जहन में टीस-सी उठती है ,जब दुनिया में कुछ ऐसा -वैसा होता है | फिर सोच के सोचा तो पाया कि ,अगर दुनिया ऐसी है ,तो मैं भी वैसा ही तो हूँ | दुनिया अगर दुष्टता का समन्दर है , तो मै भी उसी का कतरा ही तो हूँ | दुनिया अगर क्रूरता की आग है , तो मै भी उसी का ज्वाला ही तो हूँ | दुनिया अगर दुश्मनी की दीवार है , तो मै भी उसी की इंट ही तो हूँ | दुनिया अगर मैली चादर है , तो मै भी उसी का रेषा ही तो हूँ | दुनिया अगर दोजख चित्र है , तो मै भी एक शीशा ही तो हूँ |
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